डॉ विष्णु राजपूत, वैज्ञानिक, रूस
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भारत कृषि प्रधान देश है और खेती आजीविका के लिए व खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अत्याधिक महत्वपर्ण है। साथ ही, खेती गरीबी को कम करने और विकास को सतत बनाए रखने के लिहाज़ से भी जरूरी है। आबादी बढ़ने के साथ-साथ खेतों के आकार छोटे होना व कृषि का आधुनिकीकरण होना। जो आम किसानो के लिए मुश्किल होता जा रहा और परंपरागत खेती से उतना लाभ लेना मुश्किल है। न सिर्फ किसान बल्कि वैज्ञानिक भी चिंतित है क्योंकि फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए ऐसी आधुनिक तकनीकी की जरुरत है जो उर्वरक अनुप्रयोग दरों में वृद्धि के बिना फसलों की उपज को बढ़ा सके, साथ ही साथ कृषि उत्पादों की गुणवत्ता में भी सुधार कर सके।
आज बढ़ती जनसंख्या को सुचारू रूप से खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना देश के सामने बहुत बड़ी चुनौती बन रही है। साथ ही घटती कृषि योग्य मिट्टी व उर्वरकता में हास, खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। वहीं कृषि जोत का छोटा होना, प्राकृतिक आपदाएं, समय पर खाद बीज का न मिलना, विप्रणन की व्यवस्था सुचारू न होना, एक ही तरह की फसलों का ज्यादा क्षेत्र में बुवाई करना, फसलों का उचित मूल्य न मिलना, दलाल प्रथा का अंत न हो पाना अत्याधिक चिंता का विषय जरूर बना हुआ है। कहीं न कहीं सरकार के नीतिनिर्माताओं को भी यह समझ है कि बिना कृषि क्षेत्र की समस्याओं को दूर किए देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं दी जा सकती है और कृषि आधुनिक स्वरोजगार का अच्छा विकल्प भी बन सकती है। ऐसे में अगर ज्यादा से ज्यादा कृषि विशेषज्ञ (agriculture graduate) निकलेंगे तो वह निसंदेह देश के सर्वांगीण विकास में भारी योगदान दे सकेंगे। स्किल्ड कृषक उन्नत खेती करके ज्यादा से ज्यादा लाभ ले सकते है।
कृषि में पढ़ाई अत्याधिक प्रतिष्ठित प्रोफेशनल कोर्सेज में से एक माना जाता है और इस क्षेत्र में विद्या्थियों ने पढ़ाई कर देश की उन्नति में अभूतपूर्व योगदान दिया है। ग्रामीण क्षेत्र के बच्चो के लिऐ यह कोर्सेज और भी आसान रहते है और वे बहुत अच्छा परफॉर्मेंस भी देते है। क्योंकि उन्हें कृषि सम्बंधित बहुत सारी जानकारी पहले से ही होती है। आज ज्यादातर कृषि वैज्ञानिक/ विशेषज्ञ इन्ही जगहों से बनते है। जिन्होंने देश व कृषि उत्थान के लिए अतुलनीय कार्य किए है। कृषि एक ऐसा विषय है अगर कठिन परिश्रम से पढाई की जाए तो सत-प्रतिशत नौकरी के अवसर रहते है। इसके अलवा आज कृषि स्वरोजगार का अच्छा स्रोत भी बनता जा रहा है। कई नौकरी-पेशा अथवा कृषि स्नातक नौकरी छोड़ कर आधुनिक कृषि करने के लिए आगे आ रहे है और कई गुना ज्यादा टर्नओवर प्रति वर्ष ले कर उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है।
छात्रों कृषि विज्ञान के अन्तर्गत फसल प्रबंधन, आनुवंशिकी और पादप प्रजनन, प्लांट बायोटेक्नोलॉजी व मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, फसलों पर लगने वाले कीड़ों का नियंत्रण, पौधों में लगने वाली बीमारियों का अध्ययन, मिट्टी की गुणवत्ता, आधुनिक यंत्रों, जीवाणुओं के बारे में अध्ययन, मृदा को उर्वरक बनाए रखना आदि का ज्ञान हासिल करते है।
कृषि में स्नातकोत्तर डिग्री के बाद सरकारी क्षेत्र में सहायक प्राध्यापक और वैज्ञानिक के रूप में रोजगार उपलब्ध हैं। ढेरो संस्थान रिसर्च स्कॉलर्स की जॉब समय समय पर निकालते रहते है। ऐसे शोध अनुभव के बाद सरकारी और निजी क्षेत्रों में जा सकते हैं। कृषि क्षेत्र में हो रहे नित नए−नए अनुसंधानों के बाद निजी क्षेत्र भी इस व्यवसाय में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहा है। इससे कॅरियर के अवसर में भारी इजाफा हुआ है। वहीं एग्रोक्लीनिक और एग्रो−बिजनेस के नाम से भी स्वरोजगार शुरू कर सकते हैं। अगर आधुनिक तरीके से लाभदायक फसलों की खेती की जाए तो अत्याधिक लाभ लिया जा सकता है खासकर तब जब आप कृषि विज्ञान की पढ़ाई कर चुके। आज कृषि विज्ञान खेती बाड़ी अथवा आजीविका का ही साधन नहीं रह गया है बल्कि अगर कृषि व्यावसायिक रूप से से भी अपनाया सकता हैं।
किसानो के उथान लिए सरकार द्वारा हज़ारो योजना चलाई जा रही है जो कृषि स्नातक युवाओ के लिए असीम रोजगार अवसर लेकर आ रही है। ऐसी ही एक योजना मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन है जिसके तहत ग्राम स्तर पर मिनी मृदा परिक्षण प्रयोगशाला (Soil Test Laboratory) खोल कर अच्छा स्वरोजगार अपनाया जा सकता हैं। इस प्रयोगशाला को खोलने में करीब 5 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसका 75 प्रतिशत सरकार द्वारा दिया जाता है। इस प्रयोगशाला को खोलने के लिए जिले के उपनिदेशक, (कृषि), संयुक्त निदेशक कृषि या उनके कार्यालय में प्रस्ताव दिया जा सकता हैं। मधुमक्खी पालन, डेरी और मुर्गी पालन जैसे रोजगार भी शुरू किए जा सकते हैं।
कृषि अनुसन्धान में करिअर/वैज्ञानिक बनाने के असीमित अवसर है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सौ से ज्यादा शोध संस्थान व सत्तर से जयदा कृषि विश्वविद्यालय है जंहा अनुसन्धान के लिए प्रयास किये जा सकते है। इन संस्थानों ने अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत में हरित क्रांति लाकर खाद्यान्न उत्पादन 5.4 गुना, बागवानी फसलों का उत्पादन 10.1 गुना, मछली उत्पादन 15.2 गुना तक बढ़ाया है। वंही दूध व अंडे के उत्पादन में 9.7 व 48.1 गुना बृद्धि की है।
कृषि विज्ञान के विभिन्न पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए छात्र बारहवीं विज्ञान विषय में उत्तीर्ण होना आवश्यक होता है। इन पाठ्यक्रमों में नामांकन के लिए अभ्यर्थी को प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता है। ज्यादातर विश्वविद्यालयों में मई−जून महीने में अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है।
आलेख लेखक:
डॉ विष्णु राजपूत, पीएचडी,
साउदर्न फेडरल यूनिवर्सिटी, रशिया
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